तलवारों पे सर वार दिए अंगारों में जिस्म जलाया है। तब जाके कहीं हमने सर पे ये केसरी रंग सजाया है! ऐ मेरी ज़मीं, अफसोस नहीं, जो तेरे लिए सौ दर्द सहे महफ़ूज़ रहे, तेरी आन सदा, चाहे जान मेरी ये रहे न रहे। ऐ मेरी ज़मीं, महबूब मेरी, मेरी नस-नस में तेरा इश्क बहे फ़ीका न पड़े कभी रंग तेरा, जिस्मों से निकल के खून कहे। तेरी मिट्टी में मिल जांवां ग़ुल बन के मैं खिल जांवां इतनी सी, है दिल की आरज़ू! तेरी नदियों में बह जांवां तेरी फ़सलों में लहरावां इतनी सी, है दिल की आरज़ू! सरसों से भरे, खलिहान मेरे, जहां झूम के भंगड़ा पा न सका आबाद रहे, वो गांव मेरा, जहां लौट के वापस जा न सका ओ वतना वे, मेरे वतना वे, तेरा मेरा प्यार निराला था क़ुरबान हुआ, तेरी असमत पे, मैं कितना नसीबों वाला था। तेरी मिट्टी में मिल जांवां ग़ुल बन के मैं खिल जांवां इतनी सी, है दिल की आरज़ू! तेरी नदियों में बह जांवां तेरी फ़सलों में लहरावां इतनी सी, है दिल की आरज़ू! ओ हीर मेरी, तू हसती रहे, तेरी आंख घड़ी भर नम न हो मैं मरता था, जिस मुखड़े पे, कभी उसका उजाल...
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